एक धुंँध छायी है आँगने
न जाने कितने सपने छुपाने
गति प्रगती दोनों को थामने
जर रोग जन मध्य फैंलाने
चलते कदम जो आम तौर
पहने नकाब सब बंद शोर
सहमे खड़े सब इस ओर
लहमे काटते बढ़े उस ओर
भय से हृदय सबका भरा
आशा लिए हाथ थामो ज़रा
हिम्मत से बुने घना पहरा
संयम ओढ़े सबने पग धरा
डगर बहुत है ऊंँची-नीची
मगर हमने भी लकीरें खींची
सफर करते आंँखें न मीची
पहर खड़े अनेक उम्मीदें ऊँची
नैना पंचोली
22/04/2020