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लम्हें खुशी के ऐसे बिते
जैसे दिन से रात हुई।।
यादों की बस आहट है अब,
साथी! पास से दूर हुए
उलझे हैं सब दौड़ में ऐसे,
ज़िंदगी सस्ती.. महंगी जीत हुई।
बचपन के वो दिन थे छोटे,
रातें थी कहानियों से सजी।
परियों का देश वो.. सुंदर,
बोल उठते ज़हां जीव सभी।
ऊंची थी.. उड़ान वो मन की,
जिसमें डर ना था गिरने का।
जिद्द भी छोटी कद के जैसी,
एक मुट्ठी में सिमटें ऐसी,
प्यार के दो शब्द टॉफी के संग,
गुस्सा सारा पिघलाते थे।
लम्हें खुशी के ऐसे बिते
जैसे दिन से रात हुई।।
आंगन के झूलों का सुकून,
अब मिलता है बस यादों में।
लुका छुप्पी खेलने के लिए,
ढूंढती हूं अब यार मेरे।
व्यस्त है सब काम में उनके,
सपनों की सीडी चढ़ने में।
बंद है सारी ख्वाहिशें भी,
बचपन के उस लिफाफे में।
पता पूराना लिखा है जिस पर,
टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में।
मिल जाए कहीं वह खत मुझे,
जिसमें बंद है सपने मीठे।
फिर उड़ने की चाह है जागी,
खेलना है फिर अपनों के संग,
हार भी दे जीत की खुशी,
ऐसी जिंदगी फिर मिल जाए मुझे।
उम्मीद अभी रखी है ज़िन्दा
इंतजार में फिर उन लम्हों के।
लम्हें खुशी के ऐसे बिते,
जैसे दिन से रात हुई।।
नैना पंचोली 16/10/2020